“लोकगीत और जनजातीय नृत्यों से सजा दीपावली शिल्प मेला: घुंघरुओं की थाप पर झूमे दर्शक – प्रयागराज न्यूज़”

दीपावली से पहले प्रयागराज का उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र लोक संस्कृति की रंगत में रंग गया। सोमवार को आयोजित दीपावली शिल्प मेले में मुक्ताकाशी मंच पर पारंपरिक घुंघरुओं की थाप और जनजातीय संगीत की गूंज ने वातावरण को जीवंत बना दिया। ग्रामीण संस्कृति की झलक पेश करने वाले कलाकारों ने दर्शकों का दिल जीत लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ पूर्व केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति प्रो. जनक पांडेय और सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक सुदेश शर्मा ने दीप प्रज्वलन कर किया। मंच पर लोकभक्ति और परंपरा का संगम देखने को मिला।

लोकगायक यज्ञराम ने ‘भज मन राम नाम सुरददायी’ और ‘चुनरी काहे न रंगायू गोरी पांच रंग मा’ जैसे निर्गुण भजनों से कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसने दर्शकों को आत्मिक शांति से भर दिया। इसके बाद धर्मेश दीक्षित ने भोजपुरी गीतों की झड़ी लगाई, जिसमें ‘पूरबी बयारिया उड़ा वेला चुनरिया’, ‘गवना झूठे कईके लेअईलस’ और ‘इंटरनेशनल लिट्टी चोखा’ पर दर्शक झूम उठे।

मंच पर लोकनृत्यों का सिलसिला भी शुरू हुआ। मुकेश कुमार और उनकी टीम ने ‘रावण वध कर आए, श्रीराम घर लौट आए, चलो घर-घर दिवाली मनाएं’ गीत पर फरवही नृत्य प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरीं। पद्मश्री अर्जुन धुर्वे और उनके साथी कलाकारों ने कमां और बैगा परधौनी नृत्य के माध्यम से मध्य भारत की जनजातीय परंपराओं को जीवंत किया। उनके नृत्य की लय और भाव-भंगिमा ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम का संचालन अभिजीत मिश्रा ने किया, जिन्होंने कलाकारों और दर्शकों के बीच संवाद बनाए रखा और पूरे कार्यक्रम में उत्साह बनाए रखा।

इसी दौरान शिल्प हाट भी दीपावली की रौनक से जगमगा उठा। पारंपरिक साड़ियाँ, लहंगे, हस्तनिर्मित बैग, आर्टिफिशियल ज्वेलरी, क्रॉकरी और सजावटी सामानों से सजे स्टॉल्स पर खरीददारों की भीड़ लगी रही। स्थानीय शिल्पकारों की कारीगरी ने सभी का मन मोह लिया।

दीपावली शिल्प मेला सिर्फ खरीदारी का अवसर नहीं रहा, बल्कि यह लोक संस्कृति, परंपरा और कला के उत्सव में बदल गया।

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